Monday 6 April 2015

Allama Iqbal Biography In Hindi

अल्लामा इकबाल  उर्फ़ मुहम्मद इक़बाल

सर मुहम्मद इक़बाल (जीवन: 9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938) अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।
इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं: असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है। फ़ारसी में लिखी इनकी शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है।

भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। इन्हें अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है।

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

इक़्बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा!  

Sunday 5 April 2015

Mirza Ghalib Shayri in Hindi - मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी हिंदी में

ऐ बुरे वक़्त, जरा अदब से पेश आ..!
क्योंकी वक़्त नहीं लगता, वक़्त बदलने में ..!!



Yeh Ishq Nahi Aasaan Bus Yun Samjh Lijiye
Aag Ka Dariya Hai Aur Doob Ke Jana Hai


यह  इश्क़  नहीं  आसान  बस  यूँ  समझ  लीजिये 
आग  का  दरिया  है  और  डूब  के  जाना  है 

Hum Ne Mohabaton Ke Nashe Mein Aa Kar Usey Khuda Bana Daala,
Hosh Tab Aaya Jab Usne Kaha Ke Khuda Kisi Ek Ka Nahi Hota.

हम ने मोहबतों  के  नशे  में  आ  कर  उसे  खुदा  बना  डाला,

होश  तब  आया  जब  उसने  कहा  के  खुदा  किसी  एक  का  नहीं  होता |


Mirza Ghalib Shayri Aur Biography in Hindi - मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी और जीवनी हिंदी में




मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” ((27 December 1797 - 15 February 1869)) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है। यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी मीर भी इसी वजह से जाने जाता है। ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला।

ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्जू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है। उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर ज़रूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है:

“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”

जन्म और परिवार

ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे सैन्य अधिकारी थे)। ग़ालिब की पृश्ठभूमि एक तुर्क परिवार से धी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् १७५० के आसपास भारत आए थे। उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आये। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर मे काम किया और अन्ततः आगरा मे बस गये। उनके दो पुत्र व तीन पुत्रियां थी। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान व मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खान उनके दो पुत्र थे।

मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग (गालिब के पिता) ने इज़्ज़त-उत-निसा बेगम से निकाह करने किया और अपने ससुर के घर मे रहने लगे। उन्होने पहले लखनऊ के नवाब और बाद मे हैदराबाद के निज़ाम के यहाँ काम किया। १८०३ में अलवर में एक युद्ध में उनकी मृत्यु के समय गालिब मात्र ५ वर्ष के थे।

जब ग़ालिब छोटे थे तो एक नव-मुस्लिम-वर्तित ईरान से दिल्ली आए थे और उनके सान्निध्य में रहकर ग़ालिब ने फ़ारसी सीखी।

शिक्षा
ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे स्पष्टतः कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने ११ वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था। उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू मे पारम्परिक भक्ति और सौन्दर्य रस पर रचनाये लिखी जो गजल मे लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में पारंपरिक गीत काव्य की रहस्यमय-रोमांटिक शैली में सबसे व्यापक रूप से लिखा और यह गजल के रूप में जाना जाता है।

वैवाहिक जीवन
13 वर्ष की आयु मे उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकि तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले मे उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।

शाही खिताब
१८५० मे शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र २ ने मिर्ज़ा गालिब को "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-दौला" के खिताब से नवाज़ा। बाद मे उन्हे "मिर्ज़ा नोशा" क खिताब भी मिला। वे शहंशाह के दरबार मे एक महत्वपुर्ण दरबारी थे। उन्हे बहादुर शाह ज़फर २ के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार फ़क्र-उद-दिन मिर्ज़ा का शिक्षक भी नियुक्त किया गया। वे एक समय मे मुगल दरबार के शाही इतिहासविद भी थे।



Mirza Ghalib (born on 27 December 1797 – died 15 February 1869),  was the preeminent Indian Urdu and Persian poet during the last years of the Mughal Empire. He used his pen-names of Ghalib and Asad . Dabir-ul-Mulk, Najm-ud-Daula was his honorific.

During his lifetime the Mughals were eclipsed and displaced by the British and finally deposed following the defeat of the Indian rebellion of 1857, events that he wrote of. Most notably, he wrote several ghazals during his life, which have since been interpreted and sung in many different ways by different people. Mirza Ghalib, the last great poet of the Mughal Era, is considered to be one of the most popular and influential poets of the Urdu language. Today Ghalib remains popular not only in India and Pakistan but also amongst diaspora communities around the world. He's been widely sung by various singers. examples of kalam

Mirza Ghalib was born in Kala Mahal, Agra into a family descended from Aibak Turks who moved to Samarkand (now in Uzbekistan) after the downfall of the Seljuk kings. His paternal grandfather, Mirza Qoqan Baig Khan, was a Saljuq Turk who had immigrated to India from Samarkand during the reign of Ahmad Shah (1748–54). He worked at Lahore, Delhi and Jaipur, was awarded the subdistrict of Pahasu (Bulandshahr, UP) and finally settled in Agra, UP, India. He had four sons and three daughters. Mirza Abdullah Baig Khan and Mirza Nasrullah Baig Khan were two of his sons.

Mirza Abdullah Baig Khan (Ghalib's father) married Izzat-ut-Nisa Begum, an ethnic Kashmiri, and then lived at the house of his father-in-law. He was employed first by the Nawab of Lucknow and then the Nizam of Hyderabad, Deccan. He died in a battle in 1803 in Alwar and was buried at Rajgarh (Alwar, Rajasthan). Then Ghalib was a little over 5 years of age. He was raised first by his Uncle Mirza Nasrullah Baig Khan.

At the age of thirteen, Ghalib married Umrao Begum, daughter of Nawab Ilahi Bakhsh (brother of the Nawab of Ferozepur Jhirka). He soon moved to Delhi, along with his younger brother, Mirza Yousuf Khan, who had developed schizophrenia at a young age and later died in Delhi during the chaos of 1857.

In accordance with upper class Muslim tradition, he had an arranged marriage at the age of 13, but none of his seven children survived beyond infancy. After his marriage he settled in Delhi. In one of his letters he describes his marriage as the second imprisonment after the initial confinement that was life itself. The idea that life is one continuous painful struggle which can end only when life itself ends, is a recurring theme in his poetry. One of his couplets puts it in a nutshell:

क़ैद-ए -हयात बंद-ए -ग़म , अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ?